5 अगस्त 2019 को भारतीय संविधान मे संशोधन करके जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर के उसे दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। जिसे जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख नाम दिया गया । उसी समय से राज्य में इंटरनेट सेवा को बन्द कर दिया गया था। जिससे की उस राज्य का अन्य राज्यों से सर्म्पक लगभग टूट गया था। इससे वहाँ के लोगों में काफी नाराजगी भी देखने को मिली। वहाँ पर इस समय भी केवल ब्राडबैड से ही सर्म्पक कायम किया जा सकता है अभी कुछ दिनों पहले ही पोस्ट पेड मोबाईल सेवा और लैन्डलाईन सेवा को बहाल किया गया है। लगभग 5 महीने बितने के बाद भी राज्य मे इंटरनेट सेवा अभी शुरु नहीं किया गया है। लेकिन सरकार का ये दावा है कि कई जगहों से धारा 144 हटा दी गयी है सिर्फ कुछ जगहों पर अभी धारा 144 लागू हैं। इन्ही पाबंदीयों के विरुद्ध दाखिल याचिकायों पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुभाष रेड्डी , जस्टिस एनवी रमणा ,जस्टिस बीआर गवई की बेन्च ने 7 बिन्दुओं पर सरकार से जबाब माँगा है।
सुप्रीम कोर्ट कि वो 7 बाते क्या है ?
- जम्मू-कश्मीर मे जारी सभी पाबंदीयों पर सरकार 7 दिनों के अन्दर समीक्षा करे।
- संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं जिसमे कि इंटरनेट का भी अधिकार सामिल हैं। इसलिए जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबन्ध पर तत्काल चर्चा होनी चाहिए।
- इंटरनेट पर अनिश्चतकाल के लिए प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता है।
- व्यापार पूरी तरह इंटरनेट पर ऩिर्भर है इसलिए सरकारी तथा स्थानीय निकाय में जहाँ पर दुरुपयोग का खतरा कम है वहाँ इंटरनेट सेवा आरम्भ कि जाये।
- राज्य सरकार धारा 144 लगाने के फैसले को सार्वजनिक करें। जिससे कि उससे प्रभावित व्यक्ति चाहे तो उसे न्यायालय मे चुनौती दे सके।
- इंटरनेट तथा बुनियादी स्वतंत्रता पर पाबंदी लगातार नहीं लागायी जा सकती।
- मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत प्रतिबन्ध को लगाते समय नागरिकों के स्वतंत्रता और सुरक्षा को ध्यान में रख कर देना चाहिए तथा स्वंय के स्वविवेक का प्रय़ोग करना चाहिए।