Krishna Janmashtami 2020, Puja Vidhi
हमारा भारत देश देवों की धरती बोला जाता है. हिंदू धर्म के कई देवी-देवताओं ने इस धरती पर जन्म लिया है. इनमें से भगवान श्री कृष्ण की बहुत अद्भुत लीलाएं हैं. सभी भगवानों में भगवान श्री कृष्ण बहुत ही नटखट स्वभाव के हैं. उनके बचपन की बहुत ही अलौकिक लीलाएं हैं. अपने देश में अधिकतर नटखट शैतान बच्चे को अधिकतर लोग कन्हैया नंदलाला कह कर बुलाते हैं वह इसलिए. क्योंकि बचपन में भगवान श्रीकृष्ण भी बहुत नटखट और शैतान थे.
भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसी कारण इस दिन को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व जाना जाता है. जन्माष्टमी के पर्व पर अधिकांश लोग उपवास करते हैं. जिन दंपति को संतान नहीं होती है प्राप्त होती अफवाह सकते हैं. लोग अपने दीर्घायु और व्यापार में बढ़ोतरी के लिए भी यह उपवास रखते हैं. वर्ष 2020 में जन्माष्टमी को लेकर काफी दुविधा है. कुछ लोगों का कहना है किया पर 11 अगस्त को है और कुछ का मानना है कि या 12 अगस्त को है.
2020 Janmashtami 11 August Yaa 12 August ko Manae Jaaye –
हालांकि ज्योतिषाचार्य कमल नंदलाल के अनुसार जन्माष्टमी का पर्व 11 और 12 अगस्त दोनों ही दिन है. उनका मानना है जो लोग या व्रत रखते हैं उन लोगों को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. वैष्णव और स्मार्त दो अलग-अलग दिन जन्माष्टमी मनाते हैं. उनका कहना है 11 अगस्त को स्मार्त लोग जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे. जो लोग शादीशुदा और गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं वह लोग 11 अगस्त के दिन जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे. 12 अगस्त को वैष्णव समुदाय के लोग संन्यासी या बैरागी जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे मथुरा और काशी के सभी मंदिरों में 12 तारीख के दिन जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा.
11 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व का समय –
प्रात काल सुबह 9:06 से या पर्व शुरू हो जाएगा या पर्व 12 अगस्त सुबह 11:16 तक रहेगा.
12 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व का समय –
12 अगस्त के रात्रि के समय 12:05 से रात्रि 12:47 तक भगवान श्री कृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा कर सकते हैं.
भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी दिनांक व रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. अधिकांश तौर पर या एक ही साथ होते हैं जिस कारण जयंती योग बनता है. लेकिन इस बार ज्योतिषविद का मानना है. भगवान श्री कृष्ण के जन्म का नक्षत्र इस बार मेल नहीं खा रहा है.
जन्माष्टमी उपवास को कैसे मनाएं-
सूर्य उदय बेला पर स्नान कर उपवास करने का संकल्प लें. दिन में आपको किसी प्रकार का भोजन नहीं करना है पानी तथा फल आप खा सकते हैं. रात्रि मध्यकालीन के समय भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को किसी बर्तन में रखें उस मूर्ति पर दूध दही शहद शक्कर गाय के घी से स्नान कराएं. साथी पंचामृत सभी स्नान कराएं. इसके बाद गंगाजल हो यह शुद्ध जल से स्नान करें. स्नान कराने के बाद भगवान श्री कृष्ण को पीला कलर बहुत पसंद है तो उनका पसंदीदा व राष्ट्र पीतांबर. पीले पुष्प पूजा के लिए बनाए हुए प्रसाद को अर्पित करें. इसके बाद अपने मंत्र का जाप करें अंदर में प्रसाद ग्रहण करें साथी अन्य लोगों में प्रसाद का वितरण करें.